प्रकृति हमारी आवश्यकताओं को पूरा कर सकती है, न कि हमारे लालच को।
मां धरती के प्राकृतिक संसाधन और पारिस्थितिक तंत्र हमारी बुनियादी आवश्यकताओं, जैसे कि स्वच्छ हवा, पानी, भोजन और आश्रय को प्रदान करने में सक्षम हैं, लेकिन वे असीमित नहीं हैं। इसलिए, वे लालच से प्रेरित अत्यधिक और अनियंत्रित उपभोग को बनाए नहीं रख सकते। पर्यावरणीय क्षरण, जैसे कि वनों की कटाई, प्रदूषण और प्राकृतिक आवास का विनाश तब होता है जब अल्पकालिक लाभ और अत्यधिक उपभोग हमारे ग्रह के दीर्घकालिक स्वास्थ्य और स्थिरता से अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं। हमारी आवश्यकताओं और लालच के बीच यह असंतुलन पारिस्थितिक असंतुलन, जैव विविधता की हानि, जलवायु परिवर्तन और अन्य पर्यावरणीय संकटों को जन्म देता है।
वर्तमान पर्यावरणीय क्षरण से निपटने के लिए, प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहने, उसकी सीमाओं का सम्मान करने और स्थायी प्रथाओं को अपनाने के महत्व को समझना आवश्यक है, जिससे वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों का कल्याण सुनिश्चित किया जा सके। इस दिशा में, सूर्या फाउंडेशन सतत विकास की ओर कदम बढ़ाते हुए पर्यावरणीय क्षरण को कम करने के लिए प्रयासरत है।
वृक्षारोपण अभियान
सूर्या फाउंडेशन हर साल मानसून से पहले वृक्षारोपण कार्यक्रम आयोजित करता है। 18 राज्यों के 300 से अधिक गांवों के ग्रामीण स्वेच्छा से आगे आकर इस अभियान में भाग लेते हैं। पिछले एक दशक से सूर्या फाउंडेशन वृक्षारोपण में सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। इस अभियान का उद्देश्य केवल पेड़ लगाना ही नहीं, बल्कि उनके संरक्षण और पर्यावरण में उनके योगदान के प्रति जागरूकता फैलाना भी है। वृक्षों का चयन उनकी औषधीय गुणों, फल देने की क्षमता और मिट्टी के कटाव को रोकने की क्षमता के आधार पर किया जाता है। लगाए गए पेड़ों में नीम, अमरूद, आम, पीपल, जामुन, सहजन, बरगद आदि शामिल हैं।
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