ग्राम विकास

education

भारत गांवों का देश है जिसमे लगभग साढ़े छह लाख गांव हैं। भारत की आत्मा गाँवो में बसती है क्योंकि भारत की संस्कृति को सच्चे अर्थों में गाँवों ने ही सहेजकर रखा है। आजादी के बाद से ही अशिक्षा, रुढ़िवाद, आपसी झगड़े, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण गाँवों से पलायन लगातार बढ़ा है।एक समय जब भारत का स्वर्ण युग था तब भी भारत की प्रमुख अर्थव्यवस्था गाँवो से संचालित होती थी। आज भी अगर भारत को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में खड़ा होना है तो ग्राम विकास पर ही बल देना होगा। गाँवो के समग्र विकास में सहायक विभिन्न पहलुओं पर सूर्या फाउंडेशन काम कर रहा है।

कृषि –कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। भारत की 60% आबादी आज भी कृषि पर निर्भर है। सूर्या फाउंडेशन द्वारा गाँवो में जैविक कृषि के प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाते हैं। जहाँ कृषि विशेषज्ञों को बुलाकर किसानों को मिट्टी परीक्षण, बीज उपचार और जैविक खाद बनाने का प्रैक्टिकल प्रशिक्षण दिया जाता है। अब किसान स्वयं ही जीवामृत, घनजीवामृत और केंचुआ खाद जैसे जैविक उर्वरक बनाकर खेती कर रहे हैं। संस्था के प्रयासों से लगभग 2000 किसानों को जैविक कृषि का प्रशिक्षण दिया जा चुका है। स्वयं सहायता समूह –सूर्या फॉउन्डेशन ग्रामीण महिलाओं का समूह बनाकर गाँवों में स्वयं सहायता समूह की स्थापना करवाता है। संस्था के सहयोग से देशभर में 164 स्वयं सहायता समूह चल रहे हैं जिनसे 1950 महिलाऐं जुडी हुई है।

298 महिलाऐं समूह से लोन लेकर काम कर रहीं हैं। गौपालन, बकरी पालन तथा भैंस आदि पालकर लोग कमाई कर रहे हैं।कई लोगों ने समूह से मिलने वाले पैसे से दुकानें शुरू की हैं। कॉस्मेटिक की दुकान, किराना की दुकान, चाय की कैंटीन, कपड़े की दुकान, मोबाइल तथा इलेक्ट्रॉनिक की दुकान करके कई लोगों ने रोजगार प्राप्त किया है। कुछ लोग इलेक्ट्रिक रिक्शा या वैन खरीदकर उन्हें भाड़े पर चलाने का काम कर रहे हैं। स्वयं सहायता समूहों के द्वारा कई परिवारों के जीवन मे परिवर्तन आया है और ये परिवार स्वाबलंबी बने हैं। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है।

सिलाई केंद्र- सिलाई का काम हमेशा ही महिलाओं के लिए रुचिकर और सुगम रहा है। गांवों में महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए सूर्या फॉउन्डेशन द्वारा सूर्या सिलाई केंद्र चलाये जाते हैं। जहां लड़कियां और महिलाएं सिलाई/कढ़ाई का काम सीखती हैं। काम सीखकर यें महिलाएं पैसे कमाकर अपने परिवार का सहारा भी बन रही है। संस्था द्वारा वर्तमान में 19 सिलाई केंद्र चलाये जा रहे हैं जिनमे 240 बहने सिलाई सीख रही हैं। इन सिलाई केंद्रों पर बहनों द्वारा ब्लाउज, पेटीकोट और सलवार-सूट के आलावा लोवर-टीशर्ट भी बनायें जाते हैं। काम सीखकर यें महिलाएं पैसे कमाकर अपने परिवार का सहारा भी बन रही है। संस्था द्वारा वर्तमान में 19 सिलाई केंद्र चलाये जा रहे हैं जिनमे 240 बहने सिलाई सीख रही हैं। इन सिलाई केंद्रों पर बहनों द्वारा ब्लाउज, पेटीकोट और सलवार-सूट के आलावा लोवर-टीशर्ट भी बनायें जाते हैं।

हस्त शिल्प कला-भारतीय हस्तशिल्प कला की प्रशंसा पूरी दुनिया में की जाती है। इस कला की उत्कृष्टता के कई प्राचीनतम प्रमाण मिलते हैं। लेकिन धीरे धीरे विभिन्न कारणों से यह उद्योग भारत में सिमटता चला गया। हस्त शिल्प कला की संभावनाओं को देखते हुए सूर्या फाउंडेशन ने ग्रामीण क्षेत्रों में कला को समझकर उसे बढ़ावा देने के लिए कई प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये हैं। ग्रामीण महिलाएं हस्त शिल्प कला के साथ ही हथकरघा में भी निपुण हो रही हैं। 309 महिलाएँ अभी तक सूर्या फॉउण्डेशन द्वारा कराये गए हस्तशिल्प कला के प्रशिक्षण में भाग ले चुकी हैं। संस्था के प्रयासों से 8 गाँवो में 33 महिलाएं आर्टिफिशियल गहने बनाने का काम भी कर रही हैं।

डेयरी और गौउत्पाद –कृषि की तरह ही पशुपालन किसान की आय का महत्वपूर्ण साधन है।सूर्या फाउंडेशन ग्रामीणों को वैज्ञानिक विधि से पशुपालन और डेयरी उद्योग का प्रशिक्षण दे रहा है।जिससे किसानों की आय में वृद्धि हो रही है। गौधन से प्राप्त होने वाले दूध और घी के अलावा किसानों को अन्य गौउत्पाद जैसे पूजा के कंडे, धूपबत्ती, दीपक, फिनाइल और जैविक खाद आदि बनाने का प्रशिक्षण दिया जाता है। संस्था के प्रयास से 653 किसान आज देशभर में गौउत्पाद बनाकर मुनाफा कमा रहे हैं।

प्रौढ़ शिक्षा और बाल शिक्षा-मन के सभी अंधकार मिटाने का प्राथमिक माध्यम शिक्षा ही है। इसी लिए बाल शिशुओं से लेकर प्रौढ़ अवस्था के व्यक्तियों तक की शिक्षा पर संस्था बल दे रही है। इसके लिए बाल संस्कार केंद्र , प्रौढ़ संस्कार केंद्र और थैला पुस्तकालय जैसे प्रकल्पों की शुरुआत की गई है। गाँवो के सरकारी विद्यालयों में भी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के प्रयास संस्था द्वारा किये जाते हैं। समय समय पर सूर्या फाउंडेशन के शिक्षक सरकारी स्कूलों में सत्र लेने जाते हैं, बच्चों को संस्कार की बातें,देशभक्ति गीत तथा खेल आदि सिखाते हैं। विभिन्न जागरूकता गतिविधियों के माध्यम से भी ग्रामीणों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया जाता है। संस्था द्वारा 234 बाल शिक्षा केंद्र और 10 प्रौढ़ शिक्षा केंद्र संचालित किये जाते हैं। प्रौढ़ शिक्षा केंद्र में अभी तक 460 लोग शिक्षित हो चुके हैं।

गोष्ठी –संस्था के कार्यकर्ताओं द्वारा गाँव के सभी वर्गों के लोगों को एक स्थान पर एकत्र करके ग्रामीण चौपाल लगाई जाती है। सभी जाती और वर्ग के लोग इसमे एकत्र होकर गांव की समस्याओं पर चर्चा करते हैं और उनका समाधान खोजा जाता है। इन गोष्ठियों में किसी भी तरह के रूढ़िवाद और भेदभाव को समाप्त करने पर बल दिया जाता है। आपसी विवाद और झगड़ो का निपटारा इन्ही गोष्ठियों द्वारा किया जाता है। गाँवो में समरसता का भाव स्थापित करने में ऐसी गोष्ठी बहुत प्रभावी रही हैं। सरकारी योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ कैसे गांव को मिलेगा इसकी जानकारी भी इन्ही गोष्ठियों के माध्यम से ग्रामीणों को दी जाती है। ग्रामीण जनजागरण के लिए भी यें गोष्ठियां बहुत कारगार हैं। जल संरक्षण , पर्यावरण , नशामुक्ति जैसे विषयों पर जागरूकता के लिए गोष्ठियों का विशेष प्रभाव रहा है।

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