बहुस्तरीय खेती

भारत कृषि प्रधान देश है। भारत में कृषि मुख्य व्यवसाय हैं, लेकिन समय के बदलाव के साथ लोगों की रुचि खेती से कम हुई और नौकरी की ओर झुकाव बढ़ा है। परिणाम स्वरुप खेती करने की पद्धति में बहुत परिवर्तन हुये हैं। कीट नियंत्रक तथा रासायनिक खादों का अधिक प्रयोग मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा हैं।

कृषि क्षेत्र में घटती जमीन को ध्यान में रखते हुए एवं परंपरागत फसलों से हटकर सब्जियों, फल और दलहन आदि जैसे फसलों को बढ़ावा देने के लिए, परत दर परत, कम जमीन में ज्यादा उत्पादन करने की पद्धति को मल्टीलेयर के नाम से जाना जाता है। इसकी शुरुआत सागर के किसान श्री आकाश चौरसिया ने की। इसी क्रम में सूर्या फाउण्डेशन के प्रयास से मध्यप्रदेश के भिण्ड जिले के टुडीला गाँव में तथा उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर के काशीपुर ब्लॉक के बसई का मझरा गाँव में तीन दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। जिसमें आस-पास के 20 गाँवो से 100 किसानों ने भाग लिया ।

तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में कृषि पद्धति के बौद्धिक तथा प्रायोगिक सत्र भी हुये। इसमें किसानों को मल्टीलेयर कृषि प्रणाली के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर (ढाँचा) तैयार करना, भूमि पोषण करने के लिए खाद तैयार करना, अच्छे उत्पादन के लिए बीज शोधन का कार्य, कीड़ों से बचाने के लिए प्राकृतिक कीट नियंत्रक बनाने का प्रशिक्षण दिया गया।

इस पद्धति से बनाये गये ढांचे में चार परतों में क्रमश: अदरक, हल्दी, धनिया, मैथी, पालक, गाजर, मूली, शलजम, फूलगोभी, पत्तागोभी, करेला, खीरा, तोरई, लौकी, टमाटर, बैगन, पपीता, सहजन आदि फसलें उगाई जाती है।